Wednesday, October 10, 2018

उर्दू महत्वपूर्ण


50 Best Urdu Novels Read Before You Die
1

[Ghulam Bagh] غلام باغ 
by Mirza Athar Baig 
   

2

Aangan / آنگن 
by Khadija Mastoor 
 

3

Umrao Jan Ada / امراؤ جان ادا 
by Mirza Mohammad Hadi Ruswa 
 

4

Nadaar Log / نادار لوگ 
by Abdullah Hussein 
 

5

Dastak Na Do / دستک نہ دو 
by Altaf Fatima 

6

Jungle Wala Sahib / جنگل والا صاحب 
by Bapsi Sidhwa 
 

7

God's Own Land 
by Shaukat Siddiqui 
 
  

8

kae chand thay sar e aasman 
by Shamsur Rahman Faruqi 

9

Numberdar Ka Neela 
by Syed Muhammad Ashraf 

10

Piya Rang Kala / پیا رنگ کالا 
by Baba Muhammad Yahya Khan 
 
  

11

Aakhri Sawariyaan / آخری سواریاں 
by Syed Muhammad Ashraf 
 

12

Daakia aur Jolaha / ڈاکیا اور جولاہا 
by Mustansar Hussain Tarar 
 

13

Parinday / پرندے 
by Mustansar Hussain Tarar 
  

14

Qala Jangi / قلعہ جنگی 
by Mustansar Hussain Tarar 

15

Khas o Khashak Zamane / خس و خاشاک زمانے by Mustansar Hussain Tarar 
  

16

Raja Gidh / راجه گدھ 
by Bano Qudsia 
   

17

Seeta Haran / سیتا ہرن 
by Qurratulain Hyder   

18

Gardish e Rang e Chaman / گردشِ رنگ چمن 
by Qurratulain Hyder   

19

Aag Ka Darya / آگ کا دریا 
by Qurratulain Hyder   

20

Dilli / دلّی 
by Khushwant Singh   

21

Alipur ka Ailee / علی پور کا ایلی 
by Mumtaz Mufti   

22

Agay Samandar hai / آگے سمندر ہے 
by Intizar Hussain   

23

Din aur Dastaan / دن اور داستان 
by Intizar Hussain 

24

Raakh / راکھ 
by Mustansar Hussain Tarar 

25

Pyaar Ka Pehla Shehar / پیار کا پہلا شہر 
by Mustansar Hussain Tarar   

26

Sifar Se Aik Tak: Cyberspace Ke Munshi Ki Sargazasht 
by Mirza Athar Baig   

27

Hassan Ki Surat-e-Hal: Khali...Jaghein...Pur...Karo
by Mirza Athar Baig  

28

Basti / بستی 
by Intizar Hussain   

29

Akhtari Begum / اختری بیگم 
by Mirza Mohammad Hadi Ruswa   

30

Jangloos (Vol. 1) / (جانگلوس (جلد اول 
by Shaukat Siddiqui  

31

Gao Daan / گئودان 
by Munshi Premchand 

32

Chakiwara Main Visal / چاکیواڑہ میں وصال 
by Muhammad Khalid Akhtar   

33

Aabla Paa / آبلہ پا 
by Razia Fasih Ahmad 
  

34

Chalta Musafir / چلتا مسافر 
by Altaf Fatima 

35

Dasht e Soos / دشت سوس 
by Jamila Hashmi 
  

36

Kaghzi Ghaat 
by Khalida Hussain 
  

37

Mitti Adam Khati Hai / مٹی آدم کھاتی ہے 
by Mohammad Hameed Shahid 
  

Sunday, October 7, 2018

गणित शिक्षण (पेडोगाज़ी)

CTET Maths Pedagogy....
गणित शिक्षण की विधियाँ
1. छोटी कक्षाओं के लिए गणित शिक्षण की उपयुक्त विधि - खेल मनोरंजन विधि
2. रेखा गणित शिक्षण की सर्वश्रेष्ठ विधि - विश्लेषण विधि
3. बेलनाकार आकृति के शिक्षण की सर्वश्रेष्ठ विधि - आगमन निगमन विधि
4. नवीन प्रश्न को हल करने की सर्वश्रेष्ठ विधि - आगमन विधि
5. स्वयं खोज कर अपने आप सीखने की विधि - अनुसंधान विधि
6. मानसिक, शारीरिक और सामाजिक विकास के लिए सर्वश्रेष्ठ विधि - खेल विधि
7. ज्यामिति की समस्यायों को हल करने के लिए सर्वोत्तम विधि - विश्लेषण विधि
8. सर्वाधिक खर्चीली विधि - प्रोजेक्ट विधि
9. बीजगणित शिक्षण की सर्वाधिक उपयुक्त विधि - समीकरण विधि
10. सूत्र रचना के लिए सर्वोत्तम विधि - आगमन विधि
11. प्राथमिक स्तर पर थी गणित शिक्षण की सर्वोत्तम विधि - खेल विधि
12. वैज्ञानिक आविष्कार को सर्वाधिक बढ़ावा देने वाली विधि - विश्लेषण विधि
गणित शिक्षण की विधियाँ : स्मरणीय तथ्य
1. शिक्षण एक त्रि - ध्रुवी प्रक्रिया है जिसका प्रथम ध्रुव शिक्षण उद्देश्य, द्वितीय अधिगम तथा तृतीय मूल्यांकन है ।
2. व्याख्यान विधि में शिक्षण का केन्द्र बिन्दु अध्यापक होता है, वही सक्रिय रहता है ।
3. बड़ी कक्षाओं में जब किसी के जीवन परिचय या ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से परिचित कराना है, वहाँ व्याख्यान विधि उत्तम है ।
4. प्राथमिक स्तर पर थी गणित स्मृति केन्द्रित होना चाहिए जिसका आधार पुनरावृति होता हैं ।
गणित शिक्षण के प्राप्य उद्देश्य व अपेक्षित व्यवहारगत परिवर्तन ----
1. ज्ञान - छात्र गणित के तथ्यों, शब्दों, सूत्रों, सिद्धांतों, संकल्पनाओं, संकेत, आकृतियों तथा विधियों का ज्ञान प्राप्त करते हैं ।
व्यवहारगत परिवर्तन -
A. छात्र तथ्यों, परिभाषाएँ, सिद्धांतों आदि में त्रुटियों का पता लगाकर उनका सुधार करता हैं ।
B. तथ्यों तथा सिद्धांतों के आधार पर साधारण निष्कर्ष निकालता हैं ।
C. गणित की भाषा, संकेत, संख्याओं, आकृतियों आदि को भली भांति पहचानता एवं जानता हैं ।
2. अवबोध -- संकेत, संख्याओं, नियमों, परिभाषाओं आदि में अंतर तथा तुलना करना, तथ्यों तथा आकृतियों का वर्गीकरण करना सीखते हैं ।
3. कुशलता -- विधार्थी गणना करने, ज्यामिति की आकृतियों, रेखाचित्र खींचने मे, चार्ट आदि को पढ़ने में निपुणता प्राप्त कर सकेंगे । छात्र गणितीय गणनाओं को सरलता व शीघ्रता से कर सकेंगे । ज्यामितीय आकृतियों, लेखाचित्र, तालिकाओं, चार्टों आदि को पढ़ तथा खींच सकेंगे ।
4. ज्ञानापयोग --
A. छात्र ज्ञान और संकल्पनाओं का उपयोग समस्याओं को हल कर सकेंगे ।
B. छात्र तथ्यों की उपयुक्तता तथा अनुपयुक्तता की जांच कर सकेगा
C. नवीन परिस्थितियों में आने वाली समस्यायों को आत्मविश्वास के साथ हल कर सकेगा ।
5. रूचि :--
A. गणित की पहेलियों को हल कर सकेगा ।
B. गणित संबंधी लेख लिख सकेगा ।
C. गणित संबंधित सामग्री का अध्ययन करेगा ।
D. गणित के क्लब में भाग ले सकेगा ।
6. अभिरुचि :--
A. विधार्थी गणित के अध्यापक को पसंद कर सकेगा ।
B. गणित की परीक्षाओं को देने में आनन्द पा सकेगा ।
C. गणित की विषय सामग्री के बारे में सहपाठियों से चर्चा कर सकेगा ।
D. कमजोर विधार्थियों को सीखाने में मदद कर सकेगा ।
7. सराहनात्मक (Appreciation objectives)
A. छात्र दैनिक जीवन में गणित के महत्व एवं उपयोगिता की प्रशंसा कर सकेगा ।
B. गणितज्ञों के जीवन में व्याप्त लगन एवं परिश्रम को श्रद्धा की दृष्टि से देख सकेगा ।
विधियाँ ----
समस्या समाधान विधि ---
1. गणित अध्यापन की यह प्राचीनतम विधि है ।
2. अध्यापक इस विधि में विधार्थियों के समक्ष समस्यायों को प्रस्तुत करता हैं तथा विधार्थी सीखे हुए सिद्धांतों, प्रत्ययों की सहायता से कक्षा में समस्या हल करते हैं ।
समस्या प्रस्तुत करने के नियम --
1. समस्या बालक के जीवन से संबंधित हो ।
2. उनमें दिए गए तथ्यों से बालक अपरिचित नहीं होने चाहिए ।
3. समस्या की भाषा सरल व बोधगम्य होनी चाहिए ।
4. समस्या का निर्माण करते समय बालकों की आयु एवं रूचियों का भी ध्यान रखना चाहिए ।
5. समस्या लम्बी हो तो उसके दो - तीन भाग कर चाहिए ।
6. नवीन समस्या को जीवन पर आधारित समस्याओं के आधार पर प्रस्तुत करना चाहिए ।
समस्या निवारण विधि के गुण -
1. इस विधि से छात्रों में समस्या का विश्लेषण करने की योग्यता का विकास होता हैं ।
2. इससे सही चिंतन तथा तर्क करने की आदत का विकास होता है ।
3. उच्च गणित के अध्ययन में यह विधि सहायक हैं ।
4. समस्या के द्वारा विधार्थियों को जीवन से संबंधित परिस्थितियों की सही जानकारी दे सकते हैं ।
समस्या समाधान विधि के दोष
1. जीवन पर आधारित समस्याओं का निर्माण प्रत्येक अध्यापक के लिए संभव नहीं हैं ।
2. बीज गणित तथा ज्यामिति ऐसे अनेक उप विषय हैं जिसमें जीवन से संबंधित समस्यायों का निर्माण संभव नही हैं
खेल विधि
1. खेल पद्धति के प्रवर्तक हैनरी काल्डवैल कुक हैं । उन्होंने अपनी पुस्तक प्ले वे में इसकी उपयुक्तता अंग्रेजी शिक्षण हेतु बतायी हैं ।
2. सबसे पहले महान शिक्षाशास्त्री फ्रोबेल ने खेल के महत्व को स्वीकार करके शिक्षा को पूर्ण रूप से खेल केन्द्रित बनाने का प्रयत्न किया था ।
3. फ्रोबेल ने इस बात पर जोर दिया कि विधार्थियों को संपूर्ण ज्ञान खेल - खेल में दिया जाना चाहिए ।
खेल में बालक की स्वाभाविक रूचि होती हैं ।
4. गणित की शिक्षा देने के लिए खेल विधि का सबसे अच्छा उपयोग इंग्लैंड के शिक्षक हैनरी काल्डवैल कुक ने किया था ।
खेल विधि के गुण --
1. मनोवैज्ञानिक विधि - खेल में बच्चें की स्वाभाविक रूचि होती है और वह खेल आत्मप्रेरणा से खेलता है । अतः इस विधि से पढ़ाई को बोझ नहीं समझता ।
2. सर्वांगीण विकास -- खेल में गणित संबंधी गणनाओं और नियमों का पूर्ण विकास होता है । इसके साथ साथ मानवीय मूल्यों का विकास भी होता हैं ।
3. क्रियाशीलता - यह विधि करो और सीखो के सिद्धांत पर आधारित है ।
4. सामाजिक दृष्टिकोण का विकास - इस विधि में पारस्परिक सहयोग से काम करने के कारण सामाजिकता का विकास होता हैं ।
5. स्वतंत्रता का वातावरण - खेल में बालक स्वतंत्रतापूर्वक खुले ह्रदय व मस्तिष्क से भाग लेता हैं ।
6. रूचिशील विधि - यह विधि गणित की निरसता को समाप्त कर देती हैं ।
खेल विधि के दोष -
1. शारीरिक शिशिलता
2. व्यवहार में कठिनाई
3. मनोवैज्ञानिक विलक्षणता
आगमन विधि
1. इस शिक्षा प्रणाली में उदाहरणों की सहायता से सामान्य नियम का निर्धारण किया जाता है, को आगमन शिक्षण विधि कहते हैं 2. यह विधि विशिष्ट से सामान्य की ओर शिक्षा सूत्र पर आधारित है ।
3. इसमें स्थूल से सूक्ष्म की ओर बढ़ा जाता है ।
उदाहरण स्थूल है, नियम सूक्ष्म ।
आगमन विधि के गुण --
1. यह शिक्षण की सर्वोत्तम विधि है । इससे नवीन ज्ञान को खोजने का अवसर मिलता है और यह अनुसंधान का मार्ग प्रशस्त करती हैं ।
2. इस विधि में विशेष से सामान्य की ओर और स्थूल से सूक्ष्म की ओर अग्रसर होने के कारण यह विधि मनोवैज्ञानिक हैं ।
3. नियमों को स्वयं निकाल सकने पर छात्रों में आत्मविश्वास की भावना का विकास होता हैं ।
4. इस विधि में रटने की प्रवृत्ति को जन्म नहीं मिलता हैं । अतः छात्रों को स्मरण शक्ति पर निर्भर रहना पड़ता है ।
5. यह विधि छोटे बच्चों के लिए अधिक उपयोगी और रोचक हैं ।
आगमन विधि के दोष --
1. यह विधि बड़ी कक्षाओं और सरल अंशों को पढ़ाने के लिए उपयुक्त हैं ।
2. आजकल की कक्षा पद्धति के अनुकूल नहीं है क्योंकि इसमें व्यक्तिगत शिक्षण पर जोर देना पड़ता है ।
3. छात्र और अध्यापक दोनों को ही अधिक परिश्रम करना पड़ता है ।
निगमन विधि
1. इस विधि में अध्यापक किसी नियम का सीधे ढ़ंग से उल्लेख करके उस पर आधारित प्रश्नों को हल करने और उदाहरणों पर नियमों को लागू करने का प्रयत्न करता हैं ।
2. इस विधि में छात्र नियम स्वयं नही निकालते, वे नियम उनकों रटा दिए जाते हैं और कुछ प्रश्नों को हल करके दिखा दिया जाता है ।
निगमन विधि के गुण --
1. बड़ी कक्षाओं में तथा छोटी कक्षाओं में भी किसी प्रकरण के कठिन अंशों को पढ़ाने के लिए यह विधि सर्वोत्तम है ।
2. यह विधि कक्षा पद्धति के लिए सबसे अधिक उपयोगी है ।
3. ज्ञान की प्राप्ति काफी तीव्र होती है । कम समय में ही अधिक ज्ञान दिया जाता है ।
4. ऊँची कक्षाओं में इस विधि का प्रयोग किया जाता है क्योंकि वे नियम को तुरंत समझ लेते है ।
5. इस विधि में छात्र तथा शिक्षक दोनों को ही कम परिश्रम करना पड़ता है ।
6. इस विधि से छात्रों की स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है ।
निगमन विधि के दोष --
1. निगमन विधि सूक्ष्म से स्थूल की ओर बढ़ने के कारण शिक्षा सिद्धांत के प्रतिकूल है । यह विधि अमनोवैज्ञानिक है ।
2. इस विधि रटने की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलता हैं ।
3. इसके माध्यम से छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण पैदा नही होता ।
4. नियम के लिए इस पद्धति में दूसरों पर आश्रित रहना पड़ता है, इसलिएइस विधि से सीखने में न आनंद मिलता है और न ही आत्मविश्वास बढ़ता हैं ।
आगमन तथा निगमन विधि में तुलनात्मक निष्कर्ष --
1. आगमन विधि निगमन विधि से अधिक मनोवैज्ञानिक हैं ।
2. प्रारंभिक अवस्था में आगमन विधि अधिक उपयुक्त है परन्तु उच्च कक्षाओं में निगमन विधि अधिक उपयुक्त है क्योंकि इसकी सहायता से कम समय में अधिक ज्ञान प्राप्त किया जा सकता हैं ।
विश्लेषण विधि (Analytic Method) --
1. विश्लेषण शब्द का अर्थ है - किसी समस्या को हल करने के लिए उसे टुकड़ों बांटना, इकट्ठी की गई वस्तु के भागों को अलग - अलग करके उनका परीक्षण करना विश्लेषण है ।
2. यह एक अनुसंधान की विधि है जिसमें जटिल से सरल, अज्ञात से ज्ञात तथा निष्कर्ष से अनुमान की ओर बढ़ते हैं ।
3. इस विधि में छात्र में तर्कशक्ति तथा सही ढंग से निर्णय लेने की आदत का विकास होता हैं ।
उदाहरण :-
एक विधार्थी के गणित, विधान तथा अंग्रेजी के अंको का औसत 15 था । संस्कृत, हिन्दी तथा सामाजिक के अंको का औसत 30 था तो बताओ 6 विषयों के अंको का औसत क्या था ?
विश्लेषण की प्रक्रिया तथा संभावित उत्तर --
1. प्रश्न में क्या दिया हैं ?
गणित, विज्ञान तथा अंग्रेजी के अंकों का औसत = 15
2. और क्या दिया है ?
बाकि तीन विषयों का औसत = 30
3. क्या ज्ञात करना है ?
6 विषयों के अंकों का औसत ?
4. सभी विषयों का औसत कैसे निकाल सकते हैं ?
जब सभी विषयों के अंकों का योग ज्ञात हो ।
5. पहले तीन विषयों के अंकों का योग कब ज्ञात हो सकता है ?
जब उनका औसत ज्ञात हो ।
6. अगले तीन विषयों का योग कब ज्ञात किया जा सकता हैं ?
जब उनका औसत ज्ञात हो ।
संश्लेषण विधि
1. संश्लेषण विधि विश्लेषण विधि के बिल्कुल विपरीत हैं ।
2. संश्लेषण का अर्थ है उस वस्तु को जिसको छोटे - छोटे टुकड़ों में विभाजित कर दिया गया है, उसे पुन: एकत्रित कर देना है ।
3. इस विधि में किसी समस्या का हल एकत्रित करनेके लिए उस समस्या से संबंधित पूर्व ज्ञात सूचनाओं को एक साथ मिलाकर समस्या को हल करने का प्रयत्न किया जाता है ।
विश्लेषण - संश्लेषण विधि --
1. दोनों विधियाँ एक दूसरे की पूरक हैं ।
2. जो शिक्षक विश्लेषण द्वारा पहले समस्या का विश्लेषण कर छात्रों को समस्या के हल ढूंढने की अंतदृष्टि पैदा करता है, वही शिक्षक गणित का शिक्षण सही अर्थ में करता हैं ।
3. "संश्लेषण विधि द्वारा सूखी घास से तिनका निकाला जाता है किंतु विश्लेषण विधि से तिनका स्वयं घास से बाहर निकल आया है ।" - प्रोफेसर यंग । अर्थात संश्लेषण विधि में ज्ञात से अज्ञात की ओर अग्रसर होते हैं, और विश्लेषण विधि में अज्ञात से ज्ञात की ओर ।
योजना विधि
1. इस विधि का प्रयोग सबसे पहले शिक्षाशास्त्री किलपैट्रिक ने किया जो प्रयोजनवादी शिक्षाशास्त्री थे ।
2. उनके अनुसार शिक्षा सप्रयोजन होनी चाहिए तथा अनुभवों द्वारा सीखने को प्रधानता दी जानी चाहिए ।
योजना विधि के सिद्धांत --
1. समस्या उत्पन्न करना
2. कार्य चुनना
3. योजना बनाना
4. योजना कार्यान्वयन
5. कार्य का निर्णय
6. कार्य का लेखा
योजना विधि के गुण --
1. बालकों में निरिक्षण, तर्क, सोचने और सहज से किसी भी परिस्थिति में निर्णय लेने की क्षमता का विकास होता हैं ।
2. क्रियात्मक तथा सृजनात्मक शक्ति का विकास होता हैं ।
योजना विधि के दोष -
इस विधि से सभी पाठों को नही पढ़ाया जा सकता ।


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Saturday, October 6, 2018

सँस्कृत महत्वपूर्ण

*----- संस्कृत-----*
          

संस्कृत व्याकरण को *माहेश्वर शास्त्र* कहा जाता है।
👉 माहेश्वर का अर्थ है-- *शिव जी*
👉 माहेश्वर सूत्र की संख्या --- *14*
👉 संस्कृत में वर्ण दो प्रकार के होते है---1= *स्वर*
2= *व्यञ्जन*।
🌸👉 *संस्कृत में स्वर*--: ( *अच्*)तीन प्रकार के होते है-----:
1=■ *ह्रस्व स्वर* ( पाँच)---  इसमें एक मात्रा का समय लगता है। *अ , इ , उ , ऋ , लृ*

2=■ *दीर्घ स्वर* (आठ)---: इसमें दो मात्रा ईआ समय लगता है। आ , ई , ऊ , ऋ , ए ,ऐ ,ओ , औ

3= ■ *प्लुत स्वर* --: इसमे तीन मात्रा का समय लगता है।
जैसे--- *हे राम३*
*ओ३म* ।
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●○●
🌸👉  *सस्कृत में व्यञ्जन* (हल् ) ----:

व्यञ्जन चार प्रकार के होते है----
1= 👉स्पर्श व्यञ्जन --: *क से म तक* = 25 वर्ण

2= 👉अन्तःस्थ व्यञ्जन ---: *य , र , ल , व*= 4 वर्ण

3= 👉 ऊष्म व्यञ्जन --: *श , ष , स , ह* = 4 वर्ण

4= 👉 संयुक्त व्यञ्जन --: *क्ष , त्र , ज्ञ* = 3 वर्ण

○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○
🌸 *प्रत्याहारों की संख्या* = 42
● *अक् प्रत्याहार*---: अ इ उ ऋ लृ  ।
● *अच् प्रत्याहार* ---:अ इ उ ऋ लृ ए ओ ऐ औ ।
● *अट् प्रत्याहार* ---: अ इ उ ऋ  लृ ए ओ ऐ औ ह् य् व् र्  ।
● *अण् प्रत्याहार* ---: अ इ उ ऋ लृ ए ओ ऐ औ ह् य् व् र् ल्  ।
● *इक् प्रत्याहार*----:  इ उ ऋ लृ  ।
● *इच् प्रत्याहार*----: इ उ ऋ लृ ए ओ ऐ औ ।
● *इण् प्रत्याहार*-----:  इ उ ऋ लृ ए ओ ऐ औ ह् य् व् र् ल्   ।
● *उक् प्रत्याहार* ----: उ ऋ लृ  ।
● *एड़् प्रत्याहार* ----: ए ओ  ।
● *एच् प्रत्याहार*----- : ए ओ ऐ औ  ।
● *ऐच् प्रत्याहार* ----- ऐ औ  ।
● *जश् प्रत्याहार* --- : ज् ब् ग् ड् द्   ।
● *यण् प्रत्याहार* ---': य् व् र् ल्   ।
● *शर् प्रत्याहार*-----: श् ष् स्    ।
● *शल् प्रत्याहार* ---- : श्  ष्  स्  ह्  ।
☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆
🌸   *प्रयत्न*---:
○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○
👉  " *वर्णों के उच्चारण करने की चेष्टा को ' प्रयत्न ' कहते है।*
👉 प्रयत्न *दो प्रकार* के होते है---:
1= आभ्यान्तर प्रयत्न
2= बाह्य प्रयत्न
■ *आभ्यान्तर प्रयत्न*----:
आभ्यान्तर प्रयत्न *पाँच प्रकार* के होते है----:
☆ *1*= स्पृष्ट ( *स्पर्श*)-----: *क से म तक के वर्ण  ।*
☆ *2*= ईषत् -- स्पृष्ट -----: *य ,र  , ल , व  ।*
☆ *3*= ईषत् -- विवृत ------:  *श  , ष  , स , ह  ।*

☆ *4*=  विवृत ----:
*अ इ उ ऋ लृ ए ओ ऐ औ  ।*

☆ *संवृत----:
" *इसमें वायु का मार्ग बन्द रहता है । प्रयोग करने में ह्रस्व  " अ " का प्रयत्न संवृत होता है किन्तु शास्त्रीय प्रक्रिया में " अ "  का प्रयत्न विवृत होता है।*
○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○
🌸 *बाह्य प्रयत्न* ------:
👉 उच्चारण की उस चेष्टा को " बाह्य प्रयत्न " कहते है ; जो मुख से वर्ण निकलते समय होती है।
👉 *बाह्य प्रयत्न  -- 11 प्रकार के होते है।*

(1=विवार  2= संवार  3= श्वास 4= नाद 5= घोष 6=:अघोष 7= अल्पप्राण 8= महाप्राण 9= उदात्त 10= अनुदात्त 11= त्वरित  )
         

📖  विषय --- संस्कृत  📖
○○○○○○○○○○○○○○

                 *सन्धि* ----

    
सन्धि का अर्थ है -- जोड़ अथवा मेल । दो शब्दों के मिलने से जो वर्ण संबन्धी परिवर्तन होता है, उसे *सन्धि* कहते है।
👉 *सन्धि के प्रकार* ----:
सन्धि तीन प्रकार के होते है---
1= स्वर सन्धि
2= व्यञ्जन सन्धि
3= विसर्ग सन्धि

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
🌸 *स्वर सन्धि-*----:
" जब पहले शब्द का अन्तिम स्वर दूसरे शब्द के आदि ( पहले) स्वर से मिलता है , तो इसे *स्वर सन्धि* कहते है।
जैसे--- *विद्या + आलय = विद्यालय*
(आ + आ = *आ*)

👉 स्वर सन्धि के * *पाँच भेद* है----
1= दीर्घ सन्धि ( *अकः सवर्णे दीर्घः* )

2= गुण सन्धि ( *आदगुणः* )

3=   वृद्धि सन्धि ( *वृद्धिरेचि* )

4= यण् सन्धि ( *इकोयणचि* )

5= अयादि सन्धि ( *एचोयवायावः* )

▪▪▪▪▪▪▪▪▪▪▪▪
🌸१=  दीर्घ सन्धि --( *अकः सवर्णे दीर्घः*)
○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○
👉 *पहचान* ---: ☆ इस सन्धि के पहले पद का अन्तिम वर्ण तथा दूसरे पद का आदि वर्ण दोनो ही स्वर होते है।
👉☆ दोनो के योग से आ , ई , ऊ , ऋ की मात्रा बीच में बनती है तो दीर्घ सन्धि होता है
👉 *उदाहरण*---:
● विद्या + आलयः = विद्यालयः
   *आ + आ =  'आ '*
●कवि + ईशः = कवीशः
     *इ + ई = ई*
● लघु + ऊर्मिः = लघूर्मिः
    *उ + ऊ = ऊ*
● पितृ + ऋणम् = पितृणम्
     *ऋ + ऋ = ऋ*
○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○
🌸 २= गुण सन्धि ( *आदगुणः* )
👉 पहचान -----:☆ इस सन्धि में विच्छेद करने पर पहले पद का अन्तिम वर्ण तथा दूसरे पद का आदि वर्ण दोनो ही स्वर होते है।  
👉 ☆ दोनों के योग से *ए ओ अर्* की मात्रा बीच मे बनती है जिससे  गुण सन्धि होता है।

🌸 *उदाहरण---*
● देव + इन्द्रः = देवेन्द्रः
      *अ + इ = ए*


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हिन्दी भाषा महत्वपूर्ण

*हिंदी भाषा*

*महत्वपूर्ण तथ्य*

👉हिन्दी को 14 सितम्बर 1949 ई. में राष्टीय भाषा का दर्जा मिला और इस की याद में हिन्दी दिवस इसी दिन मनाया जाता है

👉उसी दिन अन्य 11 भाषा भी सविधान सभा में स्वीकार की गई थी I
👉हिन्दी की मूल भाषा संस्कृत को माना गया है I
👉हिन्दी देवनागरी लिपि में
लिखी जाती है I
👉हिन्दी का पहला उपन्यास "निवासदास"

"भाषा वह साधन है जिसके माध्यम से हम सोचते है और अपने भावों/विचारो को व्यक्त करते है"

            👉वर्ण-विचार 👈
👉 किसी भाषा के व्याकरण ग्रन्थ में इन तीन तत्वों की विशेष एंव आवश्यक रूप से चर्चा/ विवेचना की जाती है I
(1) वर्ण
(2) शब्द
(3) वाक्य
हिन्दी में 52 वर्ण होते है जिन्हें दो भागो में बाटा गया है
स्वर और व्यंजन

👉स्वर- ऐसी ध्वनियाँ जिनका उच्चारण करने में अन्य किसी ध्वनि की सहायता की आवश्यकता नही होती, उन्हें स्वर कहते है I स्वर 11 होते है

अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, ऋ

अं एक अनुस्वार है
अः एक विसर्ग है

👉स्वर को दो भागो में बाटा जा सकता है I
हस्व् एंव दीर्घ I

👉जिन स्वरो के उच्चारण में अपेक्षाकृत कम समय लगे, उन्हें हस्व स्वर एंव जिन स्वरो को बोलने में अधिक समय लगे उन्हें दीर्घ स्वर कहते है I इन्हे मात्रा द्वारा दर्शाया जाता है I ये दो स्वरो को मिला कर बनते है अतः इन्हें सयुक्त स्वर कहते है I

आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ दीर्घ स्वर है I

👉 व्यंजन- जो ध्वनियाँ स्वरो की सहायता से बोली जाती है, उन्हें व्यंजन कहते हे I जब हम क बोलते है तब उसमे क् + अ मिला होता है I इस प्रकार हर व्यंजन स्वर की सहायता से ही बोला जाता है I इन्हें पाँच वर्गो तथा स्पर्श, अन्तस्थ एंव ऊष्ण व्यजनो में बाँटा जा सकता है

स्पर्श :
क वर्ग__ क्, ख्, ग्, घ्, (ङ्)
च वर्ग__ च्, छ्, ज्, झ् (ञ)
ट वर्ग__  ट्, ठ, ड्, ढ़् (ण्)
त वर्ग__ त्, थ, द् , ध् (न्)
प वर्ग__ प्, फ्, ब्, भ् (म्)

अन्तस्थ__ य, र, ल, व,
उष्म__ श्, ष, स्, ह्

संयुक्ताक्षर__
क्ष___ क् + ष्
त्र___ त् + र्
ज्ञ___ ज् + ञ
और तीन नए अक्षर
श्र___ श् + र्
(जैसे श्रमिक में प्रयुक्त होता है)
ड़- जैसे सड़क में प्रयुक्त होता है
ढ़ -जैसे पढ़ाई में प्रयुक्त होता है

हिन्दी वर्णमाला में कुल 52 अक्षर जिनमे 11 स्वर, 1 अनुस्वार, 1 विसर्ग और 33 व्यंजन है तथा तीन संयुक्ताक्षर है व् तीन नए अक्षर हैं I
👉व्यंजनो का उच्चारण 👈
क वर्ग__ क्, ख्, ग्, घ्, (ङ्)
            👆🏻
कण्ठ से उच्चारित वर्ण

च वर्ग__ च्, छ्, ज्, झ् (ञ)
             👆🏻
तालु से उच्चारित वर्ण

ट वर्ग__  ट्, ठ, ड्, ढ़् (ण्)
             👆🏻
मूर्द्धI से उच्चारित वर्ण

त वर्ग__ त्, थ, द् , ध् (न्)
            👆🏻
दंत्य से उच्चारित वर्ण

प वर्ग__ प्, फ्, ब्, भ् (म्)
            👆🏻
ओष्ठ से उच्चारित वर्ण

इन्हें आठ भागों में बाटा गया है 🥀

👉 1- स्पर्श __ क, ख, ग, घ, ट, ठ, ड, ढ, त, थ, द, ध, प, फ, ब, भ

👉2- स्पर्श संघर्षि- च, छ, ज, झ

👉3- संघर्षि- फ, श, ह, ज, ष

👉 4- अनुनासिक- ङ, ञ, ण, न, म

👉 5- पार्शिवक- ल

👉6- प्रकम्पित- र

👉 7- उत्िक्षप्त- ङ, ढ़

👉8- अर्द्धस्वर- य, व

👉 बाह्य प्रयत्न के आधार पर सम्पूर्ण व्यंजनो को दो भागों में विभाजित किया जाता है
☝अल्पप्राण
☝ महाप्राण

👉जिन वर्णों का उच्चारण करते समय मुख से निकलने वाले श्वास की मात्रा अल्प रहती है वह अल्पप्राण कहलाता है
👉 प्रत्येक वर्ण समूह का पहला, तीसरा,पाँचवा वर्ण "अल्पप्राण" होता है

👉 जिन वर्णों का उच्चारण करते समय मुख से निकलने वाले श्वास की मात्रा अधिक रहती है वह "महाप्राण" कहलाता है
👉प्रत्येक वर्ण समूह का दुसरा, चौथा, तथा सभी उष्ण वर्ण "महाप्राण" है

👉 स्वर तन्त्रियो के आधार पर👈
👉घोष/सघोष- नाद या गूंज, जिन वर्णों का उच्चारण करते समय गूंज (स्वर तंत्र में कंपन) होती है I
👉 सभी स्वर घोष होते है और इन की संख्या कुल 30 होती है
क वर्ग, च वर्ग, आदि वर्गो के अन्तिम तीन वर्ण* *ग्,घ्,ङ,ज्,झ्,ज्,ञ आदि तथा य्,र्,ल्,व्,ह् घोष वर्ण है

👉 अघोष- इन वर्णों के उच्चारण में प्राणवायु में कम्पन नही होती हे अतः कोई गुंज न होने से ये अघोष वर्ण होते है I

👉कुल संख्या- 13
सभी वर्गो के पहले और दूसरे वर्ण क्,ख्,च्,छ्,श,ष्,स् आदि सभी वर्ण अघोष है

👉 अनुनासिक- नाक का सहयोग रहता है जैसे- अँ, ऑ, ई, ऊँ आदि

👉 कुछ महत्व्पूर्ण बाते 👈
स्वराघात तथा बलाघात का सम्बन्ध शब्दों के उच्चारण के समय वर्ण पर पड़ता है I इसके द्वारा शब्दों को समझने की चेतना सामने आती है I शब्दों का उच्चारण करते हुए किसी वर्ण पर अधिक बल दिया जाता है, उसे "स्वराघात" कहते है I यह बल स्वर पर अधिक होने के कारण "स्वराघात" कहलाता है I "बलाघात" का प्रभाव वर्णों के बदले शब्दों पर पड़ता है I बलाघात विशेषण के समान अर्थ का निवारण तथा परिवर्तन में सहायता प्रदान करता है I
"अनुतान" उच्चारण के आरोह-अवरोह को "अनुतान" कहते है I यह आरोह-अवरोह शब्द तथा वाक्य का सही अर्थ प्रदान करता है।

प्रश्नोत्तर विधि से हिन्दी व्याकरण सीखो :-

Q: भाषा क्या है ? या भाषा किसे कहते हैं ?
A: भाषा भावनाओ और विचारो का आदानप्रदान( communicate)
करने का माध्यम ( medium) है।
Q: भाषा की सबसे छोटी इकाई क्या है ?
A: अक्षर या वर्ण।
Q: अक्षर या वर्ण किसे कहते हैं ?
A: भाषा की सबसे छोटी इकाई को अक्षर या वर्ण कहते हैं।
Q: मात्रा किसे कहते हैं ?
A: प्रत्येक व्यंजन के लिए एक विशेष चिन्ह (symbol) बना है जिसे मात्रा कहते हैं।
Q: शब्द किसे कहते हैं ?
A: अनेक प्रकार के स्वर , व्यंजन और मात्राओं के अर्थपूर्ण( meaningful)
समूह(group ) को शब्द कहते हैं। इसे अर्थपूर्ण ध्वनि समूह(group of sounds) भी कहते हैं।
Q: वाक्य किसे कहते हैं ?
A: शब्दों के अर्थपूर्ण समूह को वाक्य कहते हैं।
Q: व्याकरण किसे कहते हैं ?
A: भाषा को शुद्धरूप से बोलने लिखने और पढ़ने के नियमों को व्याकरण कहते हैं। या भाषा को एक प्रणाली( system) मैं बाँधने(tie)
वाली कड़ी( joint) को व्याकरण कहते हैं।
Q: मात्रा किसे कहते हैं ?
A: प्रत्येक व्यंजन के लिए एक विशेष चिन्ह (symbol) बना है जिसे मात्रा कहते हैं।
Q: हिंदी वर्णमाला किसे कहते हैं ?
A: हिंदी भाषा के वर्ण या अक्षरो का विशेष क्रम (special sequence)
वर्णमाला कहलाता है।

Q: वाक्य किसे कहते हैं ?
A: शब्दों के सार्थक समूह को वाक्य कहते हैं।
भाषा
Q: भाषा शब्द किस भाषा से लिया गया है ? (origin of word
भाषा)
A: संस्कृत।
Q: संस्कृत के किस शब्द से भाषा शब्द लिया गया है ?
A: भाष।
Q: भारत की राष्ट्र भाषा क्या है ?
A: हिंदी।
अक्षर या वर्ण
Q: हिंदी वर्णमाला में कुल ( total)
कितने वर्ण हैं ?
A: ५२ / 52
Q: हिंदी वर्णमाला में कितने स्वर हैं
?
A: १३ / 13
वैसे मूलतः स्वर 11 ही हैं कहीं कहीं 13 का उल्लेख है पर
अं एक अनुस्वार है और
अः एक विसर्ग है
अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं अः ऋ
Q: हिंदी वर्णमाला में कितने व्यंजन हैं?
A: 33 / ३३ --
क  ख ग घ ङ
च छ ज झ ञ
ट ठ ड ढ ण (ड़, ढ़)
त थ द ध न
प फ ब भ म
य र ल व
श ष स ह
Q: हिंदी वर्णमाला में कितने संयुक्त व्यंजन हैं ?
A: ३ / 3
Q: कौन से व्यंजन , संयुक्त व्यंजन कहलाते हैं।
A: जहाँ भी दो अथवा दो से अधिक व्यंजन मिल जाते हैं वे संयुक्त व्यंजन कहलाते हैं। ये दो-दो व्यंजनों से मिलकर
बने हैं। जैसे-
क्ष=क्+ष अक्षर ,
ज्ञ=ज्+ञ ज्ञान ,
त्र=त्+र
Q: हिंदी वर्णमाला में कितने अन्य स्वर हैं ?
A: 3 /३ -  ॠ ऌ ॡ  लेकिन इनका प्रयोग अधिकतर नहीं होता है।
Q-हिन्दी वर्णमाला में तीन नए वर्ण और जोड़ दिए गए हैं
Ans-ड़,ढ़ ,श्र
हिंदी लिपि
Q: हिंदी लिपि को क्या कहते हैं ?
A: हिंदी लिपि को देवनागरी लिपि कहते हैं।
Q: हिंदी लिपि को देवनागरी लिपि क्यों कहते हैं ?
A: भारत को देवों की भूमि कहा जाता है इसलिए  हिंदी की लिपि को देवनागरी लिपि कहते हैं।
शब्द
Q: शब्द कितने प्रकार के होते हैं ?
A: शब्द 2 प्रकार के होते हैं।
Q: इनके प्रकार बताओ ?
A: विकारी (declinable)  और अविकारी शब्द (indeclinable)।
Q: विकारी और अविकारी शब्द क्या हैं ?
A: जिन शब्दों का रूप बदल जाता है वो विकारी शब्द (declinable)
कहलाते हैं। जिनका रूप नहीं बदलता वो  अविकारी शब्द (indeclinable)
कहलाते हैं।
Q: विकारी शब्द (declinable)
कौन से हैं ?
A: संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण,
क्रिया आदि।
Q: अविकारी शब्द (indeclinable)कौन से हैं ?
A: क्रियाविशेषण (adverb),
सम्बन्धबोधक (preposition or post preposition ), समुच्चयबोधक (conjunction)  व  विस्मयादिबोधक (interjection)

Friday, October 5, 2018

हिन्दी से सम्बन्धित प्रथम

हिन्दी से सम्बन्धित प्रथम
मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
यहाँ पर हिन्दी से सम्बन्धित सबसे पहले साहित्यकारों, पुस्तकों, स्थानों आदि के नाम दिये गये हैं।
विज्ञान में शोधप्रबंध हिंदी में देने वाले प्रथम विद्यार्थी -- मुरली मनोहर जोशी
अन्तरराष्ट्रीय संबन्ध पर अपना शोधप्रबंध लिखने वाले प्रथम व्यक्ति -- वेद प्रताप वैदिक
प्रबंधन क्षेत्र में हिन्दी माध्यम से प्रथम शोध-प्रबंध के लेखक -- भानु प्रताप सिंह (पत्रकार) ; विषय था -- उत्तर प्रदेश प्रशासन में मानव संसाधन की उन्नत प्रवत्तियों का एक विश्लेषणात्मक अध्ययन- आगरा मंडल के संदर्भ में
हिन्दी का पहला इंजीनियर कवि -- मदन वात्स्यायन
हिन्दी में निर्णय देने वाला पहला न्यायधीश -- न्यायमूर्ति श्री प्रेम शंकर गुप्त
सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली में हिन्दी के प्रथम वक्ता -- नारायण प्रसाद सिंह (सारण-दरभंगा ; 1926)
लोकसभा में सबसे पहले हिन्दी में सम्बोधन : सीकर से रामराज्य परिषद के सांसद एन एल शर्मा पहले सदस्य थे जिन्होने पहली लोकसभा की बैठक के प्रथम सत्र के दूसरे दिन 15 मई 1952 को हिन्दी में संबोधन किया था।
हिन्दी में संयुक्त राष्ट्र संघ में भाषण देने वाला प्रथम राजनयिक -- अटल बिहारी वाजपेयी
हिन्दी का प्रथम महाकवि -- चन्दबरदाई
हिंदी का प्रथम महाकाव्य -- पृथ्वीराजरासो
हिंदी का प्रथम ग्रंथ -- पुमउ चरउ (स्वयंभू द्वारा रचित)
हिन्दी का पहला समाचार पत्र -- उदन्त मार्तण्ड (पं जुगलकिशोर शुक्ल)
हिन्दी की प्रथम पर्यावरण पत्रिका -- पर्यावरण डाइजेस्‍ट ( संपादक - डॉ. खुशाल सिंह पुरोहित )
हिन्दी-आन्दोलन : हिंदीभाषी प्रदेशों में सबसे पहले बिहार प्रदेश में सन् 1835 में हिंदी आंदोलन शुरू हुआ था। इस अनवरत प्रयास के फलस्वरूप सन् 1875 में बिहार में कचहरियों और स्कूलों में हिंदी प्रतिष्ठित हुई
हिन्दी का प्रथम आत्मचरित -- अर्धकथानक (कृतिकार हैं -- जैन कवि बनारसीदास (कवि) (वि॰सं॰ १६४३-१७००))
हिन्दी का प्रथम व्याकरण -- 'उक्ति-व्यक्ति-प्रकरण' (दामोदर पंडित)
हिन्दी व्याकरण के पाणिनी -- किशोरीदास वाजपेयी
हिन्दी का प्रथम मानक शब्दकोश -- हिंदी शब्दसागर
हिन्दी का प्रथम विश्वकोश -- हिन्दी विश्वकोश
हिन्दी का प्रथम कवि -- राहुल सांकृत्यायन की हिन्दी काव्यधारा के अनुसार हिन्दी के सबसे पहले मुसलमान कवि अमीर खुसरो नहीं, बल्कि अब्दुर्हमान हुए हैं। ये मुलतान के निवासी और जाति के जुलाहे थे। इनका समय १०१० ई० है। इनकी कविताएँ अपभ्रंश में हैं। -(संस्कृति के चार अध्याय, रामधारी सिंह दिनकर, पृष्ठ ४३१)
हिन्दी की प्रथम आधुनिक कविता -- 'स्वप्न' (महेश नारायण द्वारा रचित)[1]
मुक्तछन्द का पहला हिन्दी कवि -- महेश नारायण[2]
हिन्दी की प्रथम कहानी—हिंदी की सर्वप्रथम कहानी कौनसी है, इस विषय में विद्वानों में जो मतभेद शुरू हुआ था वह आज भी जैसे का तैसा बना हुआ है। हिंदी की सर्वप्रथम कहानी समझी जाने वाली कड़ी के अर्न्तगत सैयद इंशाअल्लाह खाँ की 'रानी केतकी की कहानी' (सन् 1803 या सन् 1808), राजा शिवप्रसाद सितारे हिंद की 'राजा भोज का सपना' (19 वीं सदी का उत्तरार्द्ध), किशोरी लाल गोस्वामी की 'इन्दुमती' (सन् 1900), माधवराव सप्रे की 'एक टोकरी भर मिट्टी' (सन् 1901), आचार्य रामचंद्र शुक्ल की 'ग्यारह वर्ष का समय' (सन् 1903) और बंग महिला की 'दुलाई वाली' (सन् 1907) नामक कहानियाँ आती हैं। परन्तु किशोरी लाल गोस्वामी द्वारा कृत 'इन्दुमती' को मुख्यतः हिंदी की प्रथम कहानी का दर्जा प्रदान किया जाता है।
हिन्दी का प्रथम लघुकथाकार --
हिन्दी का प्रथम उपन्यास -- 'देवरानी जेठानी की कहानी' (लेखक -- पंडित गौरीदत्त ; सन् १८७०)। श्रद्धाराम फिल्लौरी की भाग्यवती और लाला श्रीनिवास दास की परीक्षा गुरू को भी हिन्दी के प्रथम उपन्यस होने का श्रेय दिया जाता है।
हिंदी का प्रथम विज्ञान गल्प -- ‘आश्चर्यवृत्तांत’ (अंबिका दत्त व्यास ; 1884-1888)
हिंदी का प्रथम नाटक -- नहुष (गोपालचंद्र, १८४१)
हिंदी का प्रथम काव्य-नाटक -- ‘एक घूँट’ (जयशंकर प्रसाद ; 1915 ई.)
हिन्दी का प्रथम ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता -- सुमित्रानंदन पंत (१९६८)(चिदम्बरा के लिये प्राप्त हुआ)
हिन्दी साहित्य का प्रथम इतिहास -- भक्तमाल / इस्त्वार द ल लितरेत्यूर ऐन्दूई ऐन्दूस्तानी (अर्थात "हिन्दुई और हिन्दुस्तानी साहित्य का इतिहास", लेखक गार्सा-द-तासी)
हिन्दी कविता के प्रथम इतिहासग्रन्थ के रचयिता -- शिवसिंह सेंगर ; रचना -- शिवसिंह सरोज
हिन्दी साहित्य का प्रथम व्यवस्थित इतिहासकार -- आचार्य रामचंद्र शुक्ल
हिन्दी का प्रथम चलचित्र (मूवी) -- सत्य हरिश्चन्द्र
हिन्दी की पहली बोलती फिल्म (टाकी) -- आलम आरा
हिन्दी का अध्यापन आरम्भ करने वाला प्रथम विश्वविद्यालय -- कोलकाता विश्वविद्यालय (फोर्ट विलियम् कॉलेज)
देवनागरी के प्रथम प्रचारक -- गौरीदत्त
हिंदी की प्रथम अन्तरजाल पत्रिका 'भारत-दर्शन- न्यूज़ीलैंड से प्रकाशित।
अन्तरजाल पर हिन्दी का प्रथम समाचारपत्र -- हिन्दी मिलाप / वेबदुनिया
हिन्दी साहित्य का प्रथम राष्ट्रगीत के रचयिता -- पं. गिरिधर शर्मा ’नवरत्न‘
हिंदी का प्रथम अर्थशास्त्रीय ग्रंथ -- "संपत्तिशास्त्र" (महावीर प्रसाद द्विवेदी)
हिन्दी के प्रथम बालसाहित्यकार -- श्रीधर पाठक (1860 - 1928)
हिन्दी की प्रथम वैज्ञानिक पत्रिका -- सन् १९१३ से प्रकाशित विज्ञान (विज्ञान परिषद् प्रयाग द्वारा प्रकाशित)
सबसे पहली टाइप-आधारित देवनागरी प्रिंटिंग -- 1796 में गिलक्रिस्त (John Borthwick Gilchrist) की Grammar of the Hindoostanee Language, Calcutta ; Dick Plukker
खड़ीबोली के गद्य की प्रथम पुस्तक -- लल्लू लाल जी की प्रेम सागर (हिन्दी में भागवत का दशम् स्कन्ध) ; हिन्दी गद्य साहित्य का सूत्रपात करनेवाले चार महानुभाव कहे जाते हैं- मुंशी सदासुख लाल, इंशा अल्ला खाँ, लल्लू लाल और सदल मिश्र। ये चारों सं. 1860 के आसपास वर्तमान थे।
हिंदी की वैज्ञानिक शब्दावली—१८१० ई. में लल्लू लाल जी द्वारा संग्रहीत ३५०० शब्दों की सूची जिसमें हिंदी की वैज्ञानिक शब्दावली को फ़ारसी और अंग्रेज़ी प्रतिरूपों के साथ प्रस्तुत किया गया है।
हिन्दी की प्रथम विज्ञान-विषयक पुस्तक—१८४७ में स्कूल बुक्स सोसाइटी, आगरा ने 'रसायन प्रकाश प्रश्नोत्तर' का प्रकाशन किया।
हिन्दी का प्रथम संगीत-ग्रन्थ -- मानकुतूहल (ग्वालियर के राजा मानसिंह तोमर द्वारा रचित, 15वीं शती)
हिंदी भाषा का सबसे बड़ा और प्रामाणिक व्याकरण -- कामताप्रसाद गुरु द्वारा रचित "हिंदी व्याकरण" का प्रकाशन सर्वप्रथम नागरीप्रचारिणी सभा, काशी में अपनी लेखमाला में सं. १९७४ से सं. १९७६ वि. के बीच किया और जो सं. १९७७ (१९२० ई.) में पहली बार सभा से पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित हुआ।